गरीबों की साइकिल की कीमत 70 साल में 200 गुना हुई विद्यार्थियों के लिए बड़ा बोझ

साइकिल का आविष्कार जर्मनी के आविष्कारक कार्ल बाँन ड्रैस और स्कॉटलैंड की लोहार कर्क पैट्रिक मैक मिलन ने मिलकर किया था

कृष्णा यादव,तमकुहीराज/ कुशीनगर। साइकिल एक आवश्यक आवश्यकता है. गरीबों से लेकर विद्यार्थियों तक के लिए नित्य दिन साइकिल से यात्रा कर आवश्यक कार्यों की दिनचर्या में प्रयोग होती है। आज के प्रवेश में गरीब आदमी को साइकिल खरीदना महंगा पड़ गया है। क्योंकि 70 सालों में साइकिल की कीमत 200 गुना से भी ज्यादा हो गई है।

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साइकिल का आविष्कार वर्ष 1817 में जर्मनी के आविष्कारक के द्वारा किया गया था। वर्ष 1870 में लकड़ी की साइकिल की जगह धातू की साइकिल बनाने में प्रयास किया गया 1860 में फ्रांस में पहली बार अंग्रेजी में बाइसिकल या साइकिल का नाम रखा गया। जर्मन आविष्कारक कॉल ब्रांड ड्रेस को पहली साइकिल बनाने का श्रेय मिला 1817 में साइकिल सड़क पर आई। साइकिल का हिंदी नाम द्बिचक्र वाहिनीहै़।

1934 में साइकिल की कीमत मात्र 18 रुपए थी गांव में कोई व्यक्ति साइकिल खरीद कर लाता था। उसको देखने के लिए भीड़ लगती थी परंतु आज 70 साल बाद साइकिल की कीमत में बडा उछाल आया है। जो बढ़कर 4000 से 5000 के बीच बेची जा रही है ऐसे समय में गरीब आदमियों का साइकिल से चलना आने वाले दिनों में विकट समस्या का रूप धारण कर ली है।

साथ ही गरीबों के बच्चे जो स्कूलों में पैदल पढ़ने जाते थे उनको किसी तरह से गरीब मां बाप ने साइकिल मोहिया कराया आज वह भी साइकिल से दूर होते जा रहे हैं तथा पीठ पर किताबों की बोझ ढोने को मजबूर हैं। साइकिल गरीबों की अति आवश्यकता बन गई है।

साइकिल मैन्युफैक्चरिंग फैक्ट्रियां मँहगे दाम पर साइकिल बना रहे हैं। बाजार में हीरो जेट एवं हरक्यूलिस एटलस हीरो रॉयलरेले कंपनियों की साइकिलों की बिक्री ज्यादा है। कीमतों में उछाल के कारण गरीब व्यक्ति साइकिल चलाने से दूर होते जा रहे हैं।

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